बिहार विधानसभा चुनाव ,एक अवलोकन_Bihar Assembly Election – an Overview
November 2, 2025 | by gangaram5248@gmail.com
Bihar Assembly Election - an Overview
बिहार विधानसभा चुनाव इस वक्त देश की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना बन चुका है, जो हर कदम पर परिणाम की ओर बढ़ रहा है और हमेशा की तरह बेहद गतिशील (dynamic) और अप्रत्याशित (unpredictable) साबित हो रहा है। बिहार में एक बार फिर राजनीतिक गठबंधन, नई पार्टियों और स्वतंत्र उम्मीदवारों के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिल रहा है। कुल 243 विधानसभा सीटों और करोड़ों मतदाताओं के साथ यह चुनाव न केवल बिहार का भविष्य तय करेगा बल्कि देश की राजनीति पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा।
बिहार का देश की राजनीति पर हमेशा से बड़ा असर रहा है। इस प्रदेश ने कई प्रभावशाली नेताओं को जन्म दिया है, जैसे जयप्रकाश नारायण, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार, जिन्होंने देश के राजनीतिक मामलों पर गहरी छाप छोड़ी है।बिहार की राजनीति मुख्य रूप से दो प्रमुख नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है — लालू प्रसाद यादव, जिन्होंने सामाजिक न्याय और पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए काम किया, और नीतीश कुमार, जिन्हें सुशासन (governance) और विकास की राजनीति के लिए जाना जाता है।
एनडीए में शामिल जदयू (Janata Dal United) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस बार सुशासन और बुनियादी ढाँचे (infrastructural development) को अपना मुख्य चुनावी दांव बना रहे हैं।नीतीश कुमार अपनी सरकार द्वारा किए गए सुधारों — जैसे सड़क, बिजली, और महिला कल्याण योजनाओं — को जनता के सामने पेश कर रहे हैं, जबकि भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्याणकारी योजनाओं (welfare schemes) पर ज़ोर दे रही है।साथ ही, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा जैसे सहयोगी दल एनडीए की ताकत बढ़ा रहे हैं, हालांकि आंतरिक मतभेद और खींचतान भी गठबंधन के भीतर देखने को मिल रही है।
महागठबंधन या इंडिया ब्लॉक, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बना एक मजबूत गठबंधन है, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, CPI, और CPI(M) जैसे दल शामिल हैं।यह गठबंधन अपने चुनावी अभियान में रोज़गार, सामाजिक न्याय, और शिक्षा जैसे मुद्दों पर ज़ोर दे रहा है। इंडिया ब्लॉक का लक्ष्य है कि वह युवाओं, अल्पसंख्यकों, और पिछड़े वर्गों को अपने पक्ष में आकर्षित करे और उन्हें बदलाव की नई सोच से जोड़ सके।हालाँकि, हर गठबंधन की तरह यहाँ भी आंतरिक खींचतान और मतभेद समय-समय पर देखने को मिलते हैं, जो इसके लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
प्रशांत किशोर, जो जन सुराज पार्टी (JSP) से जुड़े हुए हैं, बिहार की राजनीति में एक नए खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं। इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) भी चुनावी मैदान में उतर चुकी है। ये दोनों पार्टियाँ कितनी सीटें जीत पाएंगी, यह कहना कठिन है, लेकिन यह निश्चित है कि ये मतदाताओं के रुझान (voters’ mood) को अवश्य प्रभावित कर रही हैं।इसके अलावा, एआईएमआईएम (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी चुनावी मैदान में सक्रिय हैं। उनकी पार्टी का प्रभाव खासकर सीमांचल क्षेत्र में देखा जा रहा है, जो परंपरागत रूप से राजद (RJD) और कांग्रेस के वोट बैंक को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
बिहार का चुनाव केवल एक राजनीतिक युद्ध नहीं है, बल्कि यह बदलती हुई जन आकांक्षाओं (aspirations) का भी प्रतीक है। इस चुनाव में नीतीश कुमार के सामने अपनी राजनीतिक विरासत (legacy) को बनाए रखने की चुनौती है, वहीं तेजस्वी यादव के लिए यह मौका है यह साबित करने का कि वे वास्तव में नई पीढ़ी के नेता हैं, जो बिहार को एक नए दिशा में ले जा सकते हैं।
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